मोम के जैसा पिघलना चाहता हूँ
मैं तेरे अनुरूप ढलना चाहता हूँ
लड़खड़ाते पैर हैं मैं गिर न जाऊं
थाम लो मुझको सम्हलना चाहता हूँ
जिन्दगी है झील का खामोश पानी
मौजे दरिया सा मचलना चाहता हूँ
जानता हूँ कुछ नहीं है बस में मेरे
फिर भी दुनिया को बदलना चाहता हूँ
कोई आकर दिल में इक दीपक जला दे
मैं अंधेरों से निकालना चाहता हूँ
आंच थोड़ी सी तू मुझको भी अता कर
बर्फ की मानिन्द गलना चाहता हूँ
एक छोटा सा हूँ दीपक मैं 'अनिल' जी
आँधियों के बीच जलना चाहता हूँ
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