जहां है चित्त भय से मुक्त, माथा है जहां ऊंचा
जहां पर ज्ञान की गंगा है बहती मुक्त धारों में
किसी के स्वार्थ से या छुद्र मन के छुद्र भावों से
जहां धरती नहीं बंटती है टुकड़ों में, विभागों में
जहां पर सत्य की गहराइयों से शब्द आते हैं
जहां सत्कर्म के पग-पग पे सोते फूट पड़ते हैं
जहां सन्मति की धारा, सद्विचारों की लहर उठ्ठें
जहां तेरी कृपा हर रूप में स्वीकार करते हैं
प्रभू तुमको भले आघात पैरों का पड़े करना
मगर भारत ये जागे कल तो ऐसे स्वर्ग में जागे
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