EARTH IS BEAUTIFUL

EARTH IS VERY BEAUTIFUL


Save the air, save the water, save the animals, save the plants.

These are necessary to save human being.

Save the art, save the culture, save the language.

These are necessary to the rise of human being.

Sunday, August 7, 2011

खामोशी से देखता, सब नीला आकाश



डा. अनिल कुमार जैन 
माँ जाड़े की धूप है, माँ पीपल की छाँव /
लेती है जब गोद में, माँ बन जाती पाँव //
श्रीफल जैसे हैं पिता, माँ जैसे नवनीत /
गद्य पाठ लगते पिता, माँ लगती है गीत //
अपनी-अपनी रोटियाँ, सेंक रहे हैं लोग /
खुदगर्जी अब हो गई, जैसे छुतहा रोग //
जैसे- तैसे दिन कटा, कैसे काटें रात /
भूखी आँतें कर रहीं, नंगे तन से बात //
तेरी कथनी व्यर्थ की, मेरी बातें गूढ़ /
मैं बोलूँ तू सुन मुझे, मैं ज्ञानी तू मूढ़ //
मैं हीरा तू कांच है, ऊंचे बोलें बोल /      
अपने-अपने नाम के, पीट रहे सब ढोल //
लगता है अब हाथ से, निकल गई है बात
दरबारों में चल रहे, जूता, थप्पड़, लात //  
रहा चमकता उम्र भर, श्रम सीकर से भाल /
वृद्धावस्था हो गई, अब जी का जंजाल //
ढलता सूरज कह रहा, फिर आयेगी भोर /
समय इशारा  कर रहा, परिवर्तन की ओर //
कौन फंस गया जाल में, किसने फेंका पास /
खामोशी से देखता,  सब नीला आकाश //
('शब्द प्रवाह' अप्रेल-जून २०११ में प्रकाशित)
   
      

2 comments:

  1. बहुत सटीक प्रस्तुति... बहुत सुंदर

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कैलाश जी

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