EARTH IS BEAUTIFUL

EARTH IS VERY BEAUTIFUL


Save the air, save the water, save the animals, save the plants.

These are necessary to save human being.

Save the art, save the culture, save the language.

These are necessary to the rise of human being.

Sunday, May 15, 2011

फ़लक से आग बरसती है जल रहा है दिन

फ़लक से  आग  बरसती है  जल रहा  है दिन 
पसीना  बन के  बदन  पर पिघल रहा है दिन
 पिघलती  सड़कों पे  छाया हुआ  है सन्नाटा 
दहकती  आग  में  जैसे की  गल रहा है दिन 
बदन हैं  भीगे हुए ,  ख़ुश्क होंठ,  ख़ुश्क गले 
हर एक शख्स को,गर्मी का खल रहा है दिन 
सुकून  रात को मिल पायेगा, ये मुश्किल है 
लपट  बना के  हवाओं को  ढल रहा  है दिन
मगर मज़े हैं 'अनिल' गर्मियों के भी अपने 
लिए वो हाथ में शरबत,  मचल रहा है दिन  

Thursday, May 5, 2011

बिना उफ़ किये किस तरह रह रहे हो


समुन्दर  की  तुम  तो   सदा  तह  रहे   हो 
क्यूँ   दरिया  में  जज़्बात  के  बह  रहे  हो 
इरादे     थे     फौलाद      जैसे        तुम्हारे 
क्यूँ   बालू   की   दीवार    से  ढह  रहे   हो 
तुम्हीं    ने   बिगाड़ी   है   आदत    हमारी 
सुधरने   की   हम  से  तुम्हीं  कह  रहे हो 
हक़ीक़त  को   पहचानो  तुम  ज़िंदगी की 
यूँ  ख्वाबों  की  दुनिया  में  क्यूँ रह रहे हो 
अँधेरे   नगर    की     अंधेरी    गली    में 
बिना  उफ़  किये  किस  तरह  रह रहे हो 
ज़रूरी    है   जीना   ख़ुदी   बेचकर   क्या 
सितम सर झुका कर 'अनिल' सह रहे हो 
(परिधि 2011) 

मैं समझता हूँ तेरी मजबूरी

कीजिये   बात   दिल   लुभाने    की 
प्यार   के   गीत    गुनगुनाने     की 
चन्द    लम्हे   मिले   हैं  जी  लें हम 
छेड़   कुछ   बात    मुस्कुराने    की 
मैं    समझता   हूँ    तेरी    मजबूरी 
कुछ    ज़रुरत    नहीं    बहाने   की 
इश्क़  किस  कश्मकश  में लाया है 
हम  सुने  दिल  की  या ज़माने की 
जाँ  बदन  से   निकल   गई   जैसे 
बात  निकली  जो  उसके जाने की 
दिल है शीशे का तू न कर कोशिश 
प्यार  में  दिल  को आजमाने की 
ज़िक्रे उल्फ़त 'अनिल' ने छेड़ा तो 
बात   की  उसने   आबो  दाने  की 
(परिधि 2011)