फ़लक से आग बरसती है जल रहा है दिन
पसीना बन के बदन पर पिघल रहा है दिन
पिघलती सड़कों पे छाया हुआ है सन्नाटा
दहकती आग में जैसे की गल रहा है दिन
बदन हैं भीगे हुए , ख़ुश्क होंठ, ख़ुश्क गले
हर एक शख्स को,गर्मी का खल रहा है दिन
सुकून रात को मिल पायेगा, ये मुश्किल है
लपट बना के हवाओं को ढल रहा है दिन
मगर मज़े हैं 'अनिल' गर्मियों के भी अपने
लिए वो हाथ में शरबत, मचल रहा है दिन