ज़हन से होकर जब इक आंधी गुज़रती है
तब ग़ज़ल या नज़्म कागज़ पर उतरती है
बैठे-बैठे सब नज़ारा देख लेता हूँ
इस सड़क से रोज़ इक दुनिया गुज़रती है
खुद ब खुद फन की खबर हो जाती है सब को
जिस तरह से फूल की खुशबू बिखरती है
अस्ल सोने की यही तासीर देखी है
आँच पाकर और भी सूरत निखरती है
जर,जहानत, ऐशो इशरत, इल्म, फनकारी
देखिये जाकर नजर किस पर ठहरती है
हाथ रख कर हाथ पर बैठे हुए हो क्यों
कोशिशों से ही ‘अनिल’ किस्मत संवरती है
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