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सितारे हैं न कोई रौशनी है
सितारे हैं न कोई रौशनी है
अँधेरी रात जैसी ज़िन्दगी है.
न जाने किस तरफ रुख मोड़ ले ये
ज़माने की हवा कुछ मन चली है
नकाब अब किस चहरे से उठेगा
दिलों में कितनों के ये खलबली है
मसीबत में गरीबों के लिए तो
यहाँ हर शख्स जैसे अजनबी है.
न पूछो आम इन्सां की कहानी
वो कल भी था परेशां आज भी है.
यूँही नाचा नहीं करते खिलौने
ये उसके हाथ की कारीगरी है
'अनिल' सच है जहाँ में आदमी की
तबाही का सबब खुद आदमी है
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दिलों में खौफ़ है कितना न पूछिए साहिब
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दिलों में खौफ़ है कितना न पूछिए साहिब
की खुद ही लोगों ने लब अपने सी लिए साहिब
रकीब मैं हूँ मगर, हो गए कई घायल
निशाना बांध के पत्थर को फेंकिये साहिब
दुखों से आपके बढ़ कर हैं दुःख जमाने में
कभी ज़मीन की जानिब भी देखिये साहिब
महक है फूल में , जैसे तपन है सूरज में
खुदा को खुद ही में महसूस कीजिये साहिब
मिला नसीब से घर आपको विरासत में
जला के अपने ही घर को न तापिये साहिब
वो जिनको जान से प्यारी है अपनी खुद्दारी
'अनिल' को आप उन्हीं में से मनिये साहिब
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गूंगे बहरों सदा दूं, तो बता क्या होगा
दर्द पत्थर को सुना दूं , तो बता क्या होगा
उसने चहरे पे कई चहरे लगा रक्खे हैं
आइना उसको दिखा दूं तो बता क्या होगा
आँख पे पर्दा है जिसके गुरूर का, उसको
चीर के सीना दिखा दूं तो बता क्या होगा
बस यही जान ले, उसकी है पहुँच ऊपर तक
नाम कातिल का बता दूं, तो बता क्या होगा
नाम से उसके मुझे जानते हैं लोग सभी
नाम दिल से जो मिटा दूं तो बता क्या होगा
इस ज़माने के धन्धकते हुए मौसम पे 'अनिल'
अश्क दो चार बहा दूं तो बता क्या होगा.
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आपका प्यार क्या मिला मुझको
जैसे संसार मिल गया मुझको
इससे पहले की हम भटक जाते
आपका साथ मिल गया मुझको
हो गया बादलों सा हल्का मैं
नर्म हाथों ने जब छुआ मुझको
इन हवाओं में आपकी खुशबू
देती है आपका पता मुझको
आपकी याद कर गई बेखुद
लोग पूछे हैं क्या हुआ मुझको
आपने मेरा हमनशीं बन कर
आसमां पर बिठा दिया मुझको
डूबकर प्यार में 'अनिल' ने कहा
ज़िन्दगी का मज़ा मिला मुझको
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अपनी जेबें भर के देख
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अपनी जेबें भर के देख
हरियाली है चर के देख
पहले ही जैसी है आज
दुनिया को मत डर के देख
तांका-झांकी अब तू छोड़
मंज़र अपने घर के देख
काग़ज़ के घोड़ों की दौड़
चश्मा नाक पे धर के देख
डर मत, गर है मुश्किल काम
हो जायेगा कर के देख
छोड़ 'अनिल' अब खोटे काम
बालों को तू सर के देख
('कशिश' काव्य संग्रह से )
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उठता सवाल दिल में, ये बार-बार क्यूं है
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उठता सवाल दिल में, ये बार-बार क्यूं है
कमज़ोर ही यहाँ पर, बनता शिकार क्यूं है.
पूछा हवा से इक दिन, टूटी सी झोपड़ी ने
पूछा हवा से इक दिन, टूटी सी झोपड़ी ने
ऊंची हवेलियों में, रहती बहार क्यूं है
दिल भीड़ में हमेशा, घबराता है हमारा
तनहाइयों में हमको, मिलता करार क्यूं है
पूछे यतीम बच्चा, माँ-बाप हो अगर तुम
भगवान घर तुम्हारा, तारों के पार क्यूं है
दुनिया का ढंग बदलने अवतार होगा कोई
सदियों से आदमी को, ये इन्तज़ार क्यूं है
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कहने को आसमान से, आईं थीं बिजलियाँ
हमको पता है, किसने जलाया था आशियाँ
बहती हवा के साथ न बह जाएँ दूर तक
बहती हवा के साथ न बह जाएँ दूर तक
मांझी ने बांध दी हैं, किनारे पे कश्तियाँ
बदहालियाँ, तबाहियां, आंसू, जिगर के दाग़
बदहालियाँ, तबाहियां, आंसू, जिगर के दाग़
फिर याद आ रहीं हैं, तेरी महरबानियाँ
माहिर हैं इल्मो-फ़न में ये ममता की मूरतें
माहिर हैं इल्मो-फ़न में ये ममता की मूरतें
रौनक भी घर की होती हैं प्यारी ये लड़कियां
अपनी लकीर उससे बढ़ाने की फ़िक्र में
दिन-रात ढूंढता है 'अनिल' उसकी ख़ामियाँ
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दिल के मासूम सवालात से डर लगता है
दिल में उठते हुए जज़्बात से डर लगता है
राहे-तारीक़ कहाँ लेके हमें जायेगी
हमको बदले हुए हालत से डर लगता है
आयेंगे, आके सितम हम पे नया ढाएँगे
आयेंगे, आके सितम हम पे नया ढाएँगे
हमको आते हुए लम्हात से डर लगता है
दिल में काँटे हैं उगे, मुंह में ज़ुबां फूलों की
दिल में काँटे हैं उगे, मुंह में ज़ुबां फूलों की
ऐसे लोगों की मुलाक़ात से डर लगता है
कांपने लगता है, क्यूँ दिन के उजाले में बदन
तुम तो कहते थे 'अनिल ' रात से डर लगता है
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